शुक्रवार, मार्च 11, 2011

क्या तू मुझे फिर से याद करना चाहता है ....??


क्या तू  मुझे फिर से याद करना चाहता है  ....??
तू गर एक बार फिर से मुझे याद करना चाहता है तो
क्षितिज के कांधों पर सर रखकर-
 रोते हुए व्याकुल वसुंधरा को देखना!
सावन के घनी मेघों की छाया में चुपके चुपके-
नीरवता में रोती हुई रात को देखना!
सबसें नज़र चुराकर ,निर्जन रास्तों पर-
कुछ ढूंढते हुए प्रभात को देखना!
बिछड़ती   हुई रात के सीने पर
सर गड़ाते हुए चाँद को देखना ! 
लौटती हुई चांदनी के गीत
अपनी पंखुड़ियों में समटते हुए
किसी कँवल को देखना!
निश्चय  मान तेरा मन अतिशय वेदना से भर आएगा|
मन के सारे अवरुद्ध कोष फूट पड़ेंगे -
तेरे रिक्त हृदय में फिर से प्रेम राग भर आएगा |
तेरे स्वर पहले ही की तरह सुबकने लगेंगे -
तू अगर अब तलक पत्थर भी हो चूका होगा तो आंसुओं सा पिघल जायेगा |
 और मुझे यकीं है तूँ फिर से मुझे ढूंढने  निकल पड़ेगा 
और मुझे उसी पल का इन्तजार है ...
दुःख  की इन चिर करुण घड़ियों से मुक्त पल भर होकर-
फिर से नए दर्दो गम के अहसासों में डूबने के लिए 
इन्तजार ...इन्तजार ...इन्तजा