आबूरोड,माउंट आबू,सिरोही, पिंडवाड़ा, शिवगंज, सरुपगंज, सुमेरपुर, मेहसाना, पालनपुर, व आबूरोड से 200 km के एरिया में प्रसारित होने वाला एफ. एम रेडियो मधुबन पर सुन सकते है आप मुझे। राजस्थानी व हिंदी दोनों के कार्यक्रमों में।
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https://archive.org/details/AshaPandeyInterview
जिंदगी में अब तलक तेरी मुहब्बत के माने लिए बैठे हैं
यही वजह है कि आँखों में अश्कों के पैमाने लिए बैठे हैं
सुना है कि तेरी हर बहार पुरबहार है जिंदगी के चमन में
और इक हम हैं कि आज तलक साये में वीराने लिए बैठे हैं
आशा पाण्डे ओझा
संभल लड़की सोहलवां बसंत आँखों में ताज़े सतरंगी सपने करवट बदलता मन का मौसम एकम से पूनम की और बढ़ता रूप रंग का चाँद आस-पास की तारावलियों को मात देकर सुन्दर और सुन्दर प्रतीत होने को क्षण-क्षण निखारता खुद को उड़ान को उतावले मन पंख बेरोक बहती अल्हड़ नदी सी मासूम हंसी बेखबर इस बात से कि उमड़-घुमड़ रहे हैं आस-पास आवारा बादल ठन्डे-ठन्डे अहसासों के
पुरुष गिद्द दृष्टि ज़िन्दगी जीने की चाह कुछ पाने की ख्वाहिश आँखों के सुनहले सपने इक नाम, मुकाम की ज़िद्द अटूट आत्मविश्वास यही कुछ तो लेकर निकली थी वह ख्वाहिशों के झोले में
किसी ने नहीं देखी उसके सपने भरे आँखों की चमक किसी को नज़र नहीं आया उसका अटूट आत्मविश्वास किसी ने नहीं नापी उसकी लगन की अथाह गहराई
माने भी नहीं किसी के लिए उसकी भरसक मेहनत के उसके चारों ओर फ़ैली हुई है एक पुरुष गिद्द दृष्टि जो मुक्त नहीं हो पा रही आज भी उसकी देह के आकर्षण से वह लड़ रही है लड़ाई देह से मुक्त होने को
क्यों हो मौन कौन सी साध साधने को रखा है यह अखंड मौन व्रत तूने स्त्री ? अब तोड़ तेरा ये मौन व्रत और चीख स्त्री क्या पता तुम्हारी चीख अंधी बंजर आँखों में रौशनी उगा दे जो देख पाने में सक्षम नहीं
तेरे साथ पग-पग पर होता हुआ अन्याय क्या पता तुम्हारी चीख छील दे उन कानों में उगा मोटी परतों का बहरापन जो सुन नहीं पाता तेरा क्रन्दन
हो सकता है तेरी चीख जरुरी हो इस सृष्टि की जमीं पर तेरी चुप्पी के बीज व तेरे आंसूओं की बरसात से उपजी पीड़ा की फसल काटने के लिए क्या पता तुम्हारी चीख पशुत्व की ओर बढती हुई आत्माओं को पुन:घेर लाये मनुष्यत्व की ओर क्या पता तुम्हारी इसी चीख से बच जाये तुम्हारा अस्तित्व इस अनंत चुप्पी में डूबी हुई भोगेगी कब तक यह भयावह संत्रास!
चुप्पी की इस शय्या पर लेटी तुम जीने की कामना से वंचित एक लाश सी लगती हो तुम्हारी चुप्पी का यही अर्थ लगाता है पुरुष कि तुम हो सिर्फ़ भोग विलासिता की वस्तु भर हो दर्ज कराने को अपने अस्तित्व की मौजूदगी तोड़ अंतहीन मौन उधेड़ अपने होठों की सिलाई जो जरा सी खुलते ही फिर सीने लगते हैं बता कब तक नहीं उतरेगी तूं अपने अंतःस्थल में और कितने युगों तक न होगा तुझको स्व का भान चल खुद के लिए न सही इस सृष्टि के लिए ही बोल तुम्हारी चीख जरुरी है बचे रहने को स्त्री बची रहने को पृथ्वी