बुधवार, जुलाई 26, 2017

जीवन का उनवान है बेटी

जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा  तो अभिमान है बेटी।

जब जब डूबे मन की नैया,
धीरज देता छोर है बेटी।
भरे उजाले दो -दो घर में,
तमस मिटाती भोर है बेटी।
दुःख को बाहर रोका करती,
ईश्वर का  वरदान है बेटी।

जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।

 घर आले में दीप वो बाले,
लीपे चौक वो ,झटके जाले।
सींचे जल से नित वो तुलसी,
बानी से वो माँजे कलशी।
माँ के गुण हैं, रूप पिता का,
 मिश्रित सी पहचान है बेटी।

जीवन का उनवान  है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।

तीज, बैशाखी,वो राखी भी
वो गणगौर, छठी ,नोरातें
ब्याह ,बंदोलों की वो शोभा,
वो त्योंहारोँ की सौगातें।
मन तरू की टहनी पर बैठी,
कोयल का मधुगान है बेटी।

जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।

आशा पाण्डेय ओझा

जीवन का उनवान है बेटी

जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा  तो अभिमान है बेटी।

जब जब डूबे मन की नैया,
धीरज देता छोर है बेटी।
भरे उजाले दो -दो घर में,
तमस मिटाती भोर है बेटी।
दुःख को बाहर रोका करती,
ईश्वर का  वरदान है बेटी।

जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।

 घर आले में दीप वो बाले,
लीपे चौक वो ,झटके जाले।
सींचे जल से नित वो तुलसी,
बानी से वो माँजे कलशी।
माँ के गुण हैं, रूप पिता का,
 मिश्रित सी पहचान है बेटी।

जीवन का उनवान  है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।

तीज, बैशाखी,वो राखी भी
वो गणगौर, छठी ,नोरातें
ब्याह ,बंदोलों की वो शोभा,
वो त्योंहारोँ की सौगातें।
मन तरू की टहनी पर बैठी,
कोयल का मधुगान है बेटी।

जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।

आशा पाण्डेय ओझा

मंगलवार, जुलाई 18, 2017

ग़ज़ल

याद की और ख़्वाब की बातें।
हर घड़ी बस ज़नाब की बातें।।

अब नये लोग सोच भी ताज़ा
 हैं पुरानी हिज़ाब की बातें

प्यार के दरमियाँ लगी होने
देखिये अब हिसाब की बातें।

गंध बारूद की उड़ी इतनी,
गुम हुई  हैं गुलाब की बातें।

पढ़ लिया भी करो कभी मन को,
सिर्फ़ पढ़ते क़िताब की बातें।

आज हँसलें चलो जरा मिलके
 फिर करेंगे अज़ाब की बातें।

सूख जाएंगे जब नदी,सागर ,
बस बचेंगी फिर आब की बातें

लोग सीधे सरल बड़े हम तो,
क्या पता बारयाब की बातें।

दर्द, बेचैनियां कहेँ किससे,
कहें किसें इज़्तिराब की बातें।

अब मुहब्बत है गुमशुदा "आशा"
हर तरफ़ है इताब की बातें।

आशा पाण्डेय ओझा

शनिवार, जुलाई 15, 2017

दोहे

थम-थम  कर इक बादली, बरसी सारी रात
झुक-झुक तरुवर ने करी ,अपने मन की बात

 कोयल कूकी डाल पर, प्रीत की चिट्ठी बांच
एक पपीहा रात भर, तपा विरह की आंच

मुरझाया है फूल क्यों ,भँवरा करता जांच
दिखलाता है फिर उसें ,निज आँखों का कांच

एक कबूतर छुप गया ,ले टहनी की आड़
शायद उसकी हो गई ,घरवाली से राड़

आशा पाण्डेय ओझा
आँखों देखा हाल लिखा है मौसम का व अपने आस पास का

शनिवार, जुलाई 01, 2017

श्याम सखा

श्याम सखा तुम आज पधारो।
कष्ट पीर से आय उबारो।।
बाल पने  का तू है साथी।
इस जीवन की तू ही थाती।।

रक्त शिराओं में तू घुलता।
धड़कन धड़कन तू ही मिलता।।
तेरी सुधियाँ इतनी आती।
ढूँढ न निज को निज में पाती

नाम अधर पर है गोपाला।
गटकूं हर पल अमृत प्याला।।
दर्शन बिन मैं तड़पूं ऐसे।
मीन तड़पती जल बिन जैसे।।

नीर भरी हूँ बदली ऐसी।
प्रीत हुई रे तुझसे कैसी।।
दीवानी हूँ तेरी वैसी।
उस मीरा राधा के जैसी।।

नेह तनिक तू भी तो करले।
खोल भुजाएँ मुझको भरले।।
देह बदल कर जब जब आऊँ।
श्याम नाम की जोत जगाऊँ।।

आशा पाण्डेय ओझा