Hello
Get a powerful SEO Boost with our all in one SEO MAX Package and beat your
competition within just 1 month
Whitehat SEO plan, check out more details here
https://www.creative-digital.co/product/seo-max-package/
thanks and regards
Creative Digital
Unsubscribe:
https://mgdots.co/unsubscribe/
मंगलवार, नवंबर 30, 2021
गुरुवार, अक्टूबर 14, 2021
SEO Max to improve ranks in 30 days
Hi!
Get a powerful SEO Boost with our all in one SEO MAX Package and beat your
competition within just 1 month
Whitehat SEO plan, check out more details here
https://www.creative-digital.co/product/seo-max-package/
thanks and regards
Creative Digital
Unsubscribe:
please send a blank email to RonaldLilly7162@gmail.com
you will be automatically unsubscribed
Get a powerful SEO Boost with our all in one SEO MAX Package and beat your
competition within just 1 month
Whitehat SEO plan, check out more details here
https://www.creative-digital.co/product/seo-max-package/
thanks and regards
Creative Digital
Unsubscribe:
please send a blank email to RonaldLilly7162@gmail.com
you will be automatically unsubscribed
शुक्रवार, अगस्त 25, 2017
दोहे
सोलहा दोहे
अब ये मत समझना कि सोलहा श्रृंगार के हैं
1
चाँद सजन नित भेजता,डिबिया भर सिंदूर।
रोज साँझ के भाल पर, खिलता झिलमिल नूर।।
2
सिंदूरी वो शाम थी, शीतल मंद बयार।
सावन की बरसात में ,बोया हमने प्यार।।
3
आंच प्रेम की जब मिली,पिघली मन की पीर।
आँखों के रस्ते बहा,दारुण दुख का नीर।।
4
मेहँदी रची हथेलियाँ,आँखों कजरी धार।
तिलक भाल पर हो सजा ,सुघड़ लगे वो नार।।
5
झीनी-झीनी ओट से,आये हल्की धूप,
धीमी सी इस आंच से,पका गुलाबी रूप।।
6
जादू उसका यूं चला, उसके वश हर सांस।
जीना उसके बिन लगे,साँसों में ज्यों फांस।।
7
सदियों से बैचेन है,तुझ बिन मेरी सांस।
मिल जाये तेरी खबर,निकले जी की फांस।।
8
प्रेम-सूत मैं कातती, उठकर सुबहो-शाम।
चरखा तेरी याद का,धागा तेरा नाम।
9
महक तुम्हारी याद की,अंतर में ली घोल।
घट में मेरे उठ रही , तेरी प्रेम हिलोल।।
10
प्रेम पुष्प जबसे खिला,जीवन बगिया डार।
महकी-महकी सी फ़ज़ा, सुरभित है संसार।।
11
आया मौसम ये अजब,बढ़ा रूह का दर्द।
यादों को पाला पड़ा, साँस-साँस है ज़र्द।।
12
सपने मेरीे आँख के, टूटे चकनाचूर।
दिल की सरहद से रही,खुशियाँ कोसों दूर।।
13
बादल -छाता तान के, औंधी लेटी धूप।
आँचल से है ढक लिया,अपना यौवन रूप।
14
नारी सागर प्रेम का,प्रण का पर्वत ठोस,
दुनिया को ये पोसती,बनकर जीवन ओस।
15
आँखों के आँगन खड़ा ,मजबूती के साथ।
प्रेम वृक्ष की जड़ पिया, कैसे छूटे हाथ ।।
16
क्षण-क्षण में ये टूटता, पगला मेरा धीर ।
याद भरी हिल्लोर से,मुँह को आये पीर।।
आशा पाण्डेय ओझा
बुधवार, जुलाई 26, 2017
जीवन का उनवान है बेटी
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।
जब जब डूबे मन की नैया,
धीरज देता छोर है बेटी।
भरे उजाले दो -दो घर में,
तमस मिटाती भोर है बेटी।
दुःख को बाहर रोका करती,
ईश्वर का वरदान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
घर आले में दीप वो बाले,
लीपे चौक वो ,झटके जाले।
सींचे जल से नित वो तुलसी,
बानी से वो माँजे कलशी।
माँ के गुण हैं, रूप पिता का,
मिश्रित सी पहचान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
तीज, बैशाखी,वो राखी भी
वो गणगौर, छठी ,नोरातें
ब्याह ,बंदोलों की वो शोभा,
वो त्योंहारोँ की सौगातें।
मन तरू की टहनी पर बैठी,
कोयल का मधुगान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
आशा पाण्डेय ओझा
मेरा तो अभिमान है बेटी।
जब जब डूबे मन की नैया,
धीरज देता छोर है बेटी।
भरे उजाले दो -दो घर में,
तमस मिटाती भोर है बेटी।
दुःख को बाहर रोका करती,
ईश्वर का वरदान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
घर आले में दीप वो बाले,
लीपे चौक वो ,झटके जाले।
सींचे जल से नित वो तुलसी,
बानी से वो माँजे कलशी।
माँ के गुण हैं, रूप पिता का,
मिश्रित सी पहचान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
तीज, बैशाखी,वो राखी भी
वो गणगौर, छठी ,नोरातें
ब्याह ,बंदोलों की वो शोभा,
वो त्योंहारोँ की सौगातें।
मन तरू की टहनी पर बैठी,
कोयल का मधुगान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
आशा पाण्डेय ओझा
जीवन का उनवान है बेटी
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।
जब जब डूबे मन की नैया,
धीरज देता छोर है बेटी।
भरे उजाले दो -दो घर में,
तमस मिटाती भोर है बेटी।
दुःख को बाहर रोका करती,
ईश्वर का वरदान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
घर आले में दीप वो बाले,
लीपे चौक वो ,झटके जाले।
सींचे जल से नित वो तुलसी,
बानी से वो माँजे कलशी।
माँ के गुण हैं, रूप पिता का,
मिश्रित सी पहचान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
तीज, बैशाखी,वो राखी भी
वो गणगौर, छठी ,नोरातें
ब्याह ,बंदोलों की वो शोभा,
वो त्योंहारोँ की सौगातें।
मन तरू की टहनी पर बैठी,
कोयल का मधुगान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
आशा पाण्डेय ओझा
मेरा तो अभिमान है बेटी।
जब जब डूबे मन की नैया,
धीरज देता छोर है बेटी।
भरे उजाले दो -दो घर में,
तमस मिटाती भोर है बेटी।
दुःख को बाहर रोका करती,
ईश्वर का वरदान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
घर आले में दीप वो बाले,
लीपे चौक वो ,झटके जाले।
सींचे जल से नित वो तुलसी,
बानी से वो माँजे कलशी।
माँ के गुण हैं, रूप पिता का,
मिश्रित सी पहचान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
तीज, बैशाखी,वो राखी भी
वो गणगौर, छठी ,नोरातें
ब्याह ,बंदोलों की वो शोभा,
वो त्योंहारोँ की सौगातें।
मन तरू की टहनी पर बैठी,
कोयल का मधुगान है बेटी।
जीवन का उनवान है बेटी।
मेरा तो अभिमान है बेटी।।
आशा पाण्डेय ओझा
मंगलवार, जुलाई 18, 2017
ग़ज़ल
याद की और ख़्वाब की बातें।
हर घड़ी बस ज़नाब की बातें।।
अब नये लोग सोच भी ताज़ा
हैं पुरानी हिज़ाब की बातें
प्यार के दरमियाँ लगी होने
देखिये अब हिसाब की बातें।
गंध बारूद की उड़ी इतनी,
गुम हुई हैं गुलाब की बातें।
पढ़ लिया भी करो कभी मन को,
सिर्फ़ पढ़ते क़िताब की बातें।
आज हँसलें चलो जरा मिलके
फिर करेंगे अज़ाब की बातें।
सूख जाएंगे जब नदी,सागर ,
बस बचेंगी फिर आब की बातें
लोग सीधे सरल बड़े हम तो,
क्या पता बारयाब की बातें।
दर्द, बेचैनियां कहेँ किससे,
कहें किसें इज़्तिराब की बातें।
अब मुहब्बत है गुमशुदा "आशा"
हर तरफ़ है इताब की बातें।
आशा पाण्डेय ओझा
हर घड़ी बस ज़नाब की बातें।।
अब नये लोग सोच भी ताज़ा
हैं पुरानी हिज़ाब की बातें
प्यार के दरमियाँ लगी होने
देखिये अब हिसाब की बातें।
गंध बारूद की उड़ी इतनी,
गुम हुई हैं गुलाब की बातें।
पढ़ लिया भी करो कभी मन को,
सिर्फ़ पढ़ते क़िताब की बातें।
आज हँसलें चलो जरा मिलके
फिर करेंगे अज़ाब की बातें।
सूख जाएंगे जब नदी,सागर ,
बस बचेंगी फिर आब की बातें
लोग सीधे सरल बड़े हम तो,
क्या पता बारयाब की बातें।
दर्द, बेचैनियां कहेँ किससे,
कहें किसें इज़्तिराब की बातें।
अब मुहब्बत है गुमशुदा "आशा"
हर तरफ़ है इताब की बातें।
आशा पाण्डेय ओझा
शनिवार, जुलाई 15, 2017
दोहे
थम-थम कर इक बादली, बरसी सारी रात
झुक-झुक तरुवर ने करी ,अपने मन की बात
कोयल कूकी डाल पर, प्रीत की चिट्ठी बांच
एक पपीहा रात भर, तपा विरह की आंच
मुरझाया है फूल क्यों ,भँवरा करता जांच
दिखलाता है फिर उसें ,निज आँखों का कांच
एक कबूतर छुप गया ,ले टहनी की आड़
शायद उसकी हो गई ,घरवाली से राड़
आशा पाण्डेय ओझा
आँखों देखा हाल लिखा है मौसम का व अपने आस पास का
झुक-झुक तरुवर ने करी ,अपने मन की बात
कोयल कूकी डाल पर, प्रीत की चिट्ठी बांच
एक पपीहा रात भर, तपा विरह की आंच
मुरझाया है फूल क्यों ,भँवरा करता जांच
दिखलाता है फिर उसें ,निज आँखों का कांच
एक कबूतर छुप गया ,ले टहनी की आड़
शायद उसकी हो गई ,घरवाली से राड़
आशा पाण्डेय ओझा
आँखों देखा हाल लिखा है मौसम का व अपने आस पास का
शनिवार, जुलाई 01, 2017
श्याम सखा
श्याम सखा तुम आज पधारो।
कष्ट पीर से आय उबारो।।
बाल पने का तू है साथी।
इस जीवन की तू ही थाती।।
रक्त शिराओं में तू घुलता।
धड़कन धड़कन तू ही मिलता।।
तेरी सुधियाँ इतनी आती।
ढूँढ न निज को निज में पाती
नाम अधर पर है गोपाला।
गटकूं हर पल अमृत प्याला।।
दर्शन बिन मैं तड़पूं ऐसे।
मीन तड़पती जल बिन जैसे।।
नीर भरी हूँ बदली ऐसी।
प्रीत हुई रे तुझसे कैसी।।
दीवानी हूँ तेरी वैसी।
उस मीरा राधा के जैसी।।
नेह तनिक तू भी तो करले।
खोल भुजाएँ मुझको भरले।।
देह बदल कर जब जब आऊँ।
श्याम नाम की जोत जगाऊँ।।
आशा पाण्डेय ओझा
कष्ट पीर से आय उबारो।।
बाल पने का तू है साथी।
इस जीवन की तू ही थाती।।
रक्त शिराओं में तू घुलता।
धड़कन धड़कन तू ही मिलता।।
तेरी सुधियाँ इतनी आती।
ढूँढ न निज को निज में पाती
नाम अधर पर है गोपाला।
गटकूं हर पल अमृत प्याला।।
दर्शन बिन मैं तड़पूं ऐसे।
मीन तड़पती जल बिन जैसे।।
नीर भरी हूँ बदली ऐसी।
प्रीत हुई रे तुझसे कैसी।।
दीवानी हूँ तेरी वैसी।
उस मीरा राधा के जैसी।।
नेह तनिक तू भी तो करले।
खोल भुजाएँ मुझको भरले।।
देह बदल कर जब जब आऊँ।
श्याम नाम की जोत जगाऊँ।।
आशा पाण्डेय ओझा
मंगलवार, जून 27, 2017
रविवार, जून 25, 2017
मधुबन एफ एम 90.4 पर
आबूरोड,माउंट आबू,सिरोही, पिंडवाड़ा, शिवगंज, सरुपगंज, सुमेरपुर, मेहसाना, पालनपुर, व आबूरोड से 200 km के एरिया में प्रसारित होने वाला एफ. एम रेडियो मधुबन पर सुन सकते है आप मुझे। राजस्थानी व हिंदी दोनों के कार्यक्रमों में।
https://archive.org/details/AshaPandeyMarwadiKavita
https://archive.org/details/AshaPandeyMarwadiKavita
मधुबन 90.4 fm पर साक्षात्कार
आबूरोड,माउंट आबू,सिरोही, पिंडवाड़ा, शिवगंज, सरुपगंज, सुमेरपुर, मेहसाना, पालनपुर, व आबूरोड से 200 km के एरिया में प्रसारित होने वाला एफ. एम रेडियो मधुबन पर सुन सकते है आप मुझे। राजस्थानी व हिंदी दोनों के कार्यक्रमों में।
https://archive.org/details/AshaPandeyInterview
https://archive.org/details/AshaPandeyInterview
जिंदगी में अब तलक तेरी मुहब्बत के माने लिए बैठे हैं
जिंदगी में अब तलक तेरी मुहब्बत के माने लिए बैठे हैं
यही वजह है कि आँखों में अश्कों के पैमाने लिए बैठे हैं
सुना है कि तेरी हर बहार पुरबहार है जिंदगी के चमन में
और इक हम हैं कि आज तलक साये में वीराने लिए बैठे हैं
आशा पाण्डे ओझा
यही वजह है कि आँखों में अश्कों के पैमाने लिए बैठे हैं
सुना है कि तेरी हर बहार पुरबहार है जिंदगी के चमन में
और इक हम हैं कि आज तलक साये में वीराने लिए बैठे हैं
आशा पाण्डे ओझा
शुक्रवार, जून 23, 2017
संभल लड़की
संभल लड़की
सोहलवां बसंत
आँखों में ताज़े सतरंगी सपने
करवट बदलता मन का मौसम
एकम से पूनम की और बढ़ता
रूप रंग का चाँद
आस-पास की तारावलियों को मात देकर
सुन्दर और सुन्दर प्रतीत होने को
क्षण-क्षण निखारता खुद को
उड़ान को उतावले मन पंख
बेरोक बहती अल्हड़ नदी सी मासूम हंसी
बेखबर इस बात से कि
उमड़-घुमड़ रहे हैं आस-पास
आवारा बादल
ठन्डे-ठन्डे अहसासों के
तेरी गर्म देह पिघलाने को
संभल लड़की
सोहलवां बसंत
आँखों में ताज़े सतरंगी सपने
करवट बदलता मन का मौसम
एकम से पूनम की और बढ़ता
रूप रंग का चाँद
आस-पास की तारावलियों को मात देकर
सुन्दर और सुन्दर प्रतीत होने को
क्षण-क्षण निखारता खुद को
उड़ान को उतावले मन पंख
बेरोक बहती अल्हड़ नदी सी मासूम हंसी
बेखबर इस बात से कि
उमड़-घुमड़ रहे हैं आस-पास
आवारा बादल
ठन्डे-ठन्डे अहसासों के
संभल लड़की
पुरुष गिद्द दृष्टि
पुरुष गिद्द दृष्टि
ज़िन्दगी जीने की चाह
कुछ पाने की ख्वाहिश
आँखों के सुनहले सपने
इक नाम, मुकाम की ज़िद्द
अटूट आत्मविश्वास
यही कुछ तो लेकर निकली थी
वह ख्वाहिशों के झोले में
किसी ने नहीं देखी
उसके सपने भरे आँखों की चमक
किसी को नज़र नहीं आया
उसका अटूट आत्मविश्वास
किसी ने नहीं नापी
उसकी लगन की अथाह गहराई
माने भी नहीं किसी के लिए
उसकी भरसक मेहनत के
उसके चारों ओर फ़ैली हुई है
एक पुरुष गिद्द दृष्टि
जो मुक्त नहीं हो पा रही
आज भी उसकी देह के आकर्षण से
वह लड़ रही है लड़ाई
देह से मुक्त होने को
ज़िन्दगी जीने की चाह
कुछ पाने की ख्वाहिश
आँखों के सुनहले सपने
इक नाम, मुकाम की ज़िद्द
अटूट आत्मविश्वास
यही कुछ तो लेकर निकली थी
वह ख्वाहिशों के झोले में
किसी ने नहीं देखी
उसके सपने भरे आँखों की चमक
किसी को नज़र नहीं आया
उसका अटूट आत्मविश्वास
किसी ने नहीं नापी
उसकी लगन की अथाह गहराई
माने भी नहीं किसी के लिए
उसकी भरसक मेहनत के
उसके चारों ओर फ़ैली हुई है
एक पुरुष गिद्द दृष्टि
जो मुक्त नहीं हो पा रही
आज भी उसकी देह के आकर्षण से
वह लड़ रही है लड़ाई
देह से मुक्त होने को
हावी है जब तक पुरुषार्थ
हावी है जब तक पुरुषार्थ
देह दिखाना
तुम्हारा धर्म
गगन परिधान भी
तुम्हारा ही धर्म
पाप
स्त्री देह से
खिसकना दुप्पटा भी
धर्म,अर्थ,काम
तीनों पर हावी
जब तक पुरुषार्थ है
स्त्री कभी अहिल्या
कभी सीता कभी द्रोपदी
बनाई जाएगी पत्थर
कभी होगा चीर हरण
कभी होगी ज़मींदोज़द
देह दिखाना
तुम्हारा धर्म
गगन परिधान भी
तुम्हारा ही धर्म
पाप
स्त्री देह से
खिसकना दुप्पटा भी
धर्म,अर्थ,काम
तीनों पर हावी
जब तक पुरुषार्थ है
स्त्री कभी अहिल्या
कभी सीता कभी द्रोपदी
बनाई जाएगी पत्थर
कभी होगा चीर हरण
कभी होगी ज़मींदोज़द
चीख स्त्री चीख
चीख स्त्री चीख
क्यों हो मौन
कौन सी साध साधने को रखा है
यह अखंड मौन व्रत तूने स्त्री ?
अब तोड़ तेरा ये मौन व्रत
और चीख स्त्री
क्या पता तुम्हारी चीख
अंधी बंजर आँखों में रौशनी उगा दे
जो देख पाने में सक्षम नहीं
तेरे साथ पग-पग पर
होता हुआ अन्याय
क्या पता तुम्हारी चीख
छील दे उन कानों में उगा
मोटी परतों का बहरापन
जो सुन नहीं पाता तेरा क्रन्दन
हो सकता है तेरी चीख जरुरी हो
इस सृष्टि की जमीं पर
तेरी चुप्पी के बीज
व तेरे आंसूओं की बरसात से
उपजी पीड़ा की फसल काटने के लिए
क्या पता तुम्हारी चीख
पशुत्व की ओर बढती हुई आत्माओं को
पुन:घेर लाये मनुष्यत्व की ओर
क्या पता तुम्हारी इसी चीख से बच जाये
तुम्हारा अस्तित्व
इस अनंत चुप्पी में डूबी हुई
भोगेगी कब तक
यह भयावह संत्रास!
चुप्पी की इस शय्या पर लेटी
तुम जीने की कामना से वंचित
एक लाश सी लगती हो
तुम्हारी चुप्पी का यही अर्थ लगाता है पुरुष
कि तुम हो सिर्फ़ भोग विलासिता की वस्तु भर हो
दर्ज कराने को अपने अस्तित्व की मौजूदगी
तोड़ अंतहीन मौन
उधेड़ अपने होठों की सिलाई
जो जरा सी खुलते ही फिर सीने लगते हैं
बता कब तक नहीं उतरेगी
तूं अपने अंतःस्थल में
और कितने युगों तक न होगा तुझको स्व का भान
चल खुद के लिए न सही इस सृष्टि के लिए ही बोल
तुम्हारी चीख जरुरी है
बचे रहने को स्त्री
बची रहने को पृथ्वी
क्यों हो मौन
कौन सी साध साधने को रखा है
यह अखंड मौन व्रत तूने स्त्री ?
अब तोड़ तेरा ये मौन व्रत
और चीख स्त्री
क्या पता तुम्हारी चीख
अंधी बंजर आँखों में रौशनी उगा दे
जो देख पाने में सक्षम नहीं
तेरे साथ पग-पग पर
होता हुआ अन्याय
क्या पता तुम्हारी चीख
छील दे उन कानों में उगा
मोटी परतों का बहरापन
जो सुन नहीं पाता तेरा क्रन्दन
हो सकता है तेरी चीख जरुरी हो
इस सृष्टि की जमीं पर
तेरी चुप्पी के बीज
व तेरे आंसूओं की बरसात से
उपजी पीड़ा की फसल काटने के लिए
क्या पता तुम्हारी चीख
पशुत्व की ओर बढती हुई आत्माओं को
पुन:घेर लाये मनुष्यत्व की ओर
क्या पता तुम्हारी इसी चीख से बच जाये
तुम्हारा अस्तित्व
इस अनंत चुप्पी में डूबी हुई
भोगेगी कब तक
यह भयावह संत्रास!
चुप्पी की इस शय्या पर लेटी
तुम जीने की कामना से वंचित
एक लाश सी लगती हो
तुम्हारी चुप्पी का यही अर्थ लगाता है पुरुष
कि तुम हो सिर्फ़ भोग विलासिता की वस्तु भर हो
दर्ज कराने को अपने अस्तित्व की मौजूदगी
तोड़ अंतहीन मौन
उधेड़ अपने होठों की सिलाई
जो जरा सी खुलते ही फिर सीने लगते हैं
बता कब तक नहीं उतरेगी
तूं अपने अंतःस्थल में
और कितने युगों तक न होगा तुझको स्व का भान
चल खुद के लिए न सही इस सृष्टि के लिए ही बोल
तुम्हारी चीख जरुरी है
बचे रहने को स्त्री
बची रहने को पृथ्वी
गुरुवार, जून 22, 2017
जीवन माथा फोड़ी साहब
पल पल एक हथौड़ी साहब
चैन नहीं है दम भर इनको
साँसे फिरती दौड़ी साहब
रिश्ते नाटक ऐसे करते
बिगड़ी जैसे घोड़ी साहब
अपने मन की सबने करली
कसर नहीं कुछ छोड़ी साहब
छोड़ ख़ुशी पल में भग जाती
ग़म से इसकी जोड़ी साहब
दुख का ट्रैफिक सुख को रोके
किस्मत कर दो चौड़ी साहब
नियम बना दो कुछ तो दुख के
हद ही इसने तोड़ी साहब
जोड़-जोड़ कर जोड़ा हमने
साथ न आई कौड़ी साहब
टूट-टूट फिर से जुड़ जाती
होती आस निगोड़ी साहब
आगे बढ़ने की जल्दी में
कितनी होड़ा-हौड़ी साहब
छोडो क्या शिकवा भी करना
बची बहुत ही थोड़ी साहब
छुटकारा मिल जाये इससे
जाऊं हरकी पौड़ी साहब
आशा पाण्डेय ओझा
पल पल एक हथौड़ी साहब
चैन नहीं है दम भर इनको
साँसे फिरती दौड़ी साहब
रिश्ते नाटक ऐसे करते
बिगड़ी जैसे घोड़ी साहब
अपने मन की सबने करली
कसर नहीं कुछ छोड़ी साहब
छोड़ ख़ुशी पल में भग जाती
ग़म से इसकी जोड़ी साहब
दुख का ट्रैफिक सुख को रोके
किस्मत कर दो चौड़ी साहब
नियम बना दो कुछ तो दुख के
हद ही इसने तोड़ी साहब
जोड़-जोड़ कर जोड़ा हमने
साथ न आई कौड़ी साहब
टूट-टूट फिर से जुड़ जाती
होती आस निगोड़ी साहब
आगे बढ़ने की जल्दी में
कितनी होड़ा-हौड़ी साहब
छोडो क्या शिकवा भी करना
बची बहुत ही थोड़ी साहब
छुटकारा मिल जाये इससे
जाऊं हरकी पौड़ी साहब
आशा पाण्डेय ओझा
शुक्रवार, जून 16, 2017
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
