ग़ज़ल
हर एक लफ्ज़ में ग़म अपना ढाल लेते हैं
हर इक वरक पर कलेजा निकाल लेते हैं
हम जानते हैं ये पहलू भी दोनों तेरे ही हैं
सुकून भर को ये सिक्का उछाल लेते हैं
अजीब शोर है अहसास का मेरे दिल में
गुब्बारे दिल से ये सागर निकाल लेते हैं
ज़हर पियेगा भला कौन इन हवाओं का
मिज़ाजे शिव की तरह खुद में ढाल लेते हैं
तेरी बेवफ़ाई पे यकीं करें तो मर ही जायें शायद
यह ख़याल ही दिल से निकाल लेते हैं
ये दर्दो -ग़म भी कहाँ ख़त्म होंगे आशा के
bahot sunder likhtin hain.
जवाब देंहटाएंतेरी बेवफ़ाई पे यंकी करते तो मर जाते हम
जवाब देंहटाएंजीने की ख़ातिर तूं बावफ़ा वहम पाल लिया मैंने..
बहुत खूब .... आशा जी."शुभ"
vaham na ho to jindagi katani muskil ho jaye .,
जवाब देंहटाएंshiv mile na mile , jahar khatm ho jaye .
lajabab rachna
जानती हूं हेड -ओ -टेल सब तेरी ही मर्जी है
जवाब देंहटाएंसिर्फ सुकूं खातिर सिक्का उछाल लिया मैंने ....
शब्दों का अच्छा प्रयोग ... सुंदर रचना