सोलहा दोहे
अब ये मत समझना कि सोलहा श्रृंगार के हैं
1
चाँद सजन नित भेजता,डिबिया भर सिंदूर।
रोज साँझ के भाल पर, खिलता झिलमिल नूर।।
2
सिंदूरी वो शाम थी, शीतल मंद बयार।
सावन की बरसात में ,बोया हमने प्यार।।
3
आंच प्रेम की जब मिली,पिघली मन की पीर।
आँखों के रस्ते बहा,दारुण दुख का नीर।।
4
मेहँदी रची हथेलियाँ,आँखों कजरी धार।
तिलक भाल पर हो सजा ,सुघड़ लगे वो नार।।
5
झीनी-झीनी ओट से,आये हल्की धूप,
धीमी सी इस आंच से,पका गुलाबी रूप।।
6
जादू उसका यूं चला, उसके वश हर सांस।
जीना उसके बिन लगे,साँसों में ज्यों फांस।।
7
सदियों से बैचेन है,तुझ बिन मेरी सांस।
मिल जाये तेरी खबर,निकले जी की फांस।।
8
प्रेम-सूत मैं कातती, उठकर सुबहो-शाम।
चरखा तेरी याद का,धागा तेरा नाम।
9
महक तुम्हारी याद की,अंतर में ली घोल।
घट में मेरे उठ रही , तेरी प्रेम हिलोल।।
10
प्रेम पुष्प जबसे खिला,जीवन बगिया डार।
महकी-महकी सी फ़ज़ा, सुरभित है संसार।।
11
आया मौसम ये अजब,बढ़ा रूह का दर्द।
यादों को पाला पड़ा, साँस-साँस है ज़र्द।।
12
सपने मेरीे आँख के, टूटे चकनाचूर।
दिल की सरहद से रही,खुशियाँ कोसों दूर।।
13
बादल -छाता तान के, औंधी लेटी धूप।
आँचल से है ढक लिया,अपना यौवन रूप।
14
नारी सागर प्रेम का,प्रण का पर्वत ठोस,
दुनिया को ये पोसती,बनकर जीवन ओस।
15
आँखों के आँगन खड़ा ,मजबूती के साथ।
प्रेम वृक्ष की जड़ पिया, कैसे छूटे हाथ ।।
16
क्षण-क्षण में ये टूटता, पगला मेरा धीर ।
याद भरी हिल्लोर से,मुँह को आये पीर।।
आशा पाण्डेय ओझा
नारी सागर प्रेम का,प्रण का पर्वत ठोस,
जवाब देंहटाएंदुनिया को ये पोसती,बनकर जीवन ओस।... बहुत सुन्दर दोहे आशा जी , बधाई स्वीकारें