थम-थम कर इक बादली, बरसी सारी रात
झुक-झुक तरुवर ने करी ,अपने मन की बात
कोयल कूकी डाल पर, प्रीत की चिट्ठी बांच
एक पपीहा रात भर, तपा विरह की आंच
मुरझाया है फूल क्यों ,भँवरा करता जांच
दिखलाता है फिर उसें ,निज आँखों का कांच
एक कबूतर छुप गया ,ले टहनी की आड़
शायद उसकी हो गई ,घरवाली से राड़
आशा पाण्डेय ओझा
आँखों देखा हाल लिखा है मौसम का व अपने आस पास का
झुक-झुक तरुवर ने करी ,अपने मन की बात
कोयल कूकी डाल पर, प्रीत की चिट्ठी बांच
एक पपीहा रात भर, तपा विरह की आंच
मुरझाया है फूल क्यों ,भँवरा करता जांच
दिखलाता है फिर उसें ,निज आँखों का कांच
एक कबूतर छुप गया ,ले टहनी की आड़
शायद उसकी हो गई ,घरवाली से राड़
आशा पाण्डेय ओझा
आँखों देखा हाल लिखा है मौसम का व अपने आस पास का
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