रविवार, मार्च 28, 2010

ओ ह्रदय!


ओ हृदय !
लड़ो मस्तिष्क से
रखो उसें निज अधीन
मस्तिष्क का तुम पर आधिपत्य
बना देगा ,सृष्टी सवेंदनहीन

मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे "

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