क्यों दहकते हैं पलाश के जंगल
गली,घर,दरवाजे,खिड़की जंगल
दस्तक देती
किसको ढूंढती फिरती है फाल्गुन की
ये बावरी हवाएं
फूलों की खातिर उलझ-उलझ कर काँटों से
क्यों जख्मी हो जाती है रोज ही
ये पगली तितलियाँ
रेगिस्तान के सूने सीने में
हूड्ड़ हूड्ड़ कर बजता
सदियों ये किसी की याद का अंधड़
आसमां के सीने में
किसकी कमी ने भर दिया
दरिया दरिया गुब्बार
युगों से रत्ती भर भी कम न पड़ी
ये पपीहे के कलेजे में
अंबर-धरा को विगलित करती
किसके नाम की उठती है हूक
इतना तो जान पाई हूँ ये सब ही हैं प्रेमपगे
पर कहो न
इनके हाथ कहाँ से लगी प्रेम किताब ?
आशा पाण्डेय ओझा
गली,घर,दरवाजे,खिड़की जंगल
दस्तक देती
किसको ढूंढती फिरती है फाल्गुन की
ये बावरी हवाएं
फूलों की खातिर उलझ-उलझ कर काँटों से
क्यों जख्मी हो जाती है रोज ही
ये पगली तितलियाँ
रेगिस्तान के सूने सीने में
हूड्ड़ हूड्ड़ कर बजता
सदियों ये किसी की याद का अंधड़
आसमां के सीने में
किसकी कमी ने भर दिया
दरिया दरिया गुब्बार
युगों से रत्ती भर भी कम न पड़ी
ये पपीहे के कलेजे में
अंबर-धरा को विगलित करती
किसके नाम की उठती है हूक
इतना तो जान पाई हूँ ये सब ही हैं प्रेमपगे
पर कहो न
इनके हाथ कहाँ से लगी प्रेम किताब ?
आशा पाण्डेय ओझा
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