रविवार, अगस्त 03, 2014

रिक्त नहीं थी मैं

तुमने कहा
तुम अपना दर्द मुझे दो
मैं उसें ख़ुशी मैं बदल दूंगा
मान गई मैं
तुमने कहा
तुम अपने आँसूं मुझे दे दो
मैं उसें हंसीं मैं बदल दूंगा
मान गई मैं
तुमने कहा
तुम अपनी दरकन मुझे दो
उसें जुड़ाव में बदल दूंगा
मान गई मैं
तुमने कहा
तुम अपनी रिक्तता मुझे दो
भर दूंगा उसें
नहीं मानी मैं
क्योंकि
रिक्त नहीं थी मैं
नस-नस मैं थी
उसकी याद
हृदय में था
उसका कंपन
कानों में थी
उसकी गूंज
होंठों पर था
उसका नाम
आत्मा में था
उसका संचार
मुझमे था वो
रिक्त नहीं थी मैं

 पुस्तक ज़र्र- ज़र्रे में वो है से यह कविता

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