शनिवार, अगस्त 02, 2014


तुमने कहा
मुहब्बत में मत  भटको 
परमतत्व ढूंढो
दिन रात 
भूखी प्यासी
लगी रही ढूँढने में  
परमतत्व 
जाने कितने 
दिवस ,मास 
बरस ,युग 
बीत गए 
पर नहीं मिला 
 वो परमतत्व 
और मैं जानती हूँ 
कि वो कभी मिलेगा भी नहीं 
क्योंकि 
तुम्हारे कहे में आकर 
छोड़ जो दिया 
मैंने उस तक पंहुचने का 
सही रास्ता 
जो था सिर्फ 
और सिर्फ 
मुहब्बत 
ज़र्रे-ज़र्रे  से 
मुहब्बत 
आशा पांडे ओझा

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही मोहम और रोचक शैली है आपकी

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  2. उसकी बनाई प्रकृति से प्रेम ही उस तक पहुंचा सकता है..... अद्भुत भाव.....

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  3. प्रेम सृष्टि का परम तत्व है, ईश्वर में भी तो वही मिलेगा...दार्शनिक कविता..

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  4. उस तक पंहुचने का सही रास्ता
    ... सिर्फ , और सिर्फ मुहब्बत !
    ज़र्रे-ज़र्रे से मुहब्बत !!

    बहुत सही कहा आपने ...

    आदरणीया आशा पांडे ओझा जी
    सस्नेहाभिवादन !

    सुंदर !
    अच्छी भाव पूर्ण रचना है ...
    आभार !


    ~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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